सैडलर आयोग क्या है इसके सुझाव Sadler commission 1917
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दोस्तों इस लेख के माध्यम से आप सैडलर आयोग क्या है? इसका गठन कब और क्यों किया गया आदि। तो आइये शुरू करते है, यह लेख सैडलर आयोग क्या है इसके सुझाव:-
वर्धा शिक्षा योजना क्या है उद्देश्य तथा सिद्धांत
सैडलर आयोग क्या है Sadler commission 1917
कलकत्ता विश्वविद्यालय के बढ़ते प्रसार के कारण कई प्रकार की शैक्षिक समस्याओं ने भी जन्म लिया और विश्वविद्यालय प्रशासन में भी कई प्रकार के दोष थे जिससे शिक्षर्थियों और विश्वविद्यालय स्टॉफ को भी अध्ययन और अध्यापन में व्यवधान उत्पन्न होते थे,
इसलिए कलकत्ता विश्वविद्यालय की विभिन्न समस्याओ की जाँच तथा सुधार के लिए 1917 में डॉक्टर एम.ई. सैडलर के नेतृत्व में सैडलर आयोग का गठन 1917 ई में हुआ, इसमें दो भारतीय भी, डॉक्टर आशुतोष मुखर्जी एवं डॉक्टर जियाउद्दीन अहमद, सदस्य थे।
इस आयोग का मुख्य उद्देश्य कलकत्ता विश्वविद्यालय' की समस्याओं के अध्ययन और निवारण के लिए सुझाव देना था। सैडलर आयोग ने कलकत्ता विश्विद्यालय के साथ माध्यमिक स्नातकक स्तर की शिक्षा पर भी अपना मत व्यक्त किया आयोग ने विश्वविद्यालय शिक्षा
में संरचनात्मक बदलाव हेतु कुछ भी सुझाव दिये और उच्चतर माध्यिमक शिक्षा के पश्चात् स्नातक के लिये त्रिवर्षीय शिक्षा की वकालत की। आयोग ने महिला शिक्षा, अनुप्रयुक्त विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा और अध्यापकों के प्रशिक्षण बल दिया।
सैडलर आयोग द्वारा कोलकाता विश्वविद्यालय के लिए सुझाव Tips for Kolkata University
सैडलर आयोग ने कोलकाता विश्वविद्यालय के समस्त कार्यकलापों तत्कालीन परिस्थितियों और वहाँ के शैक्षिक वातावरण का गहराई से अध्ययन किया और उन्होंने एक निष्कर्ष निकाला कि कलकत्ता विश्वविद्यालय शिक्षा संवाद शिक्षा संस्थाओं और छात्रों की संख्या की दृष्टि से काफी अधिक विकसित हो चुका है,
इसलिए विश्वविद्यालय अपने कर्तव्य और दायित्व के प्रति न्याय नहीं कर सकता है अतः आयोग ने निम्नलिखित प्रकार के सुझाव कलकत्ता विश्वविद्यालय के लिए दिए ताकि वे अपने शासन प्रशासन को मजबूत बना सकें:-
- सैडलर आयोग ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के शासन प्रशासन को मजबूत करने के लिए सुझाव दिया कि ढाका में शीघ्र एक और विश्वविद्यालय की स्थापना शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से की जाए, जिससे कलकत्ता विश्वविद्यालय का भार कम हो सकें।
- कोलकाता महानगरी की समस्त शिक्षा संस्थाओं को संगठित किया जाए और उन्हें मिलाकर एक ऐसे विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए जो बेहतर अध्यापन कार्य करा सकें।
- ग्रामीण अंचलों के कॉलेजों को भी संगठित किया जाना चाहिए और एक कॉलेज विश्वविद्यालय स्थापित कर दिया जाना चाहिए।
भारतीय विश्वविद्यालय प्रशासन उत्तरदायित्व संगठन संबंधित सिफारिशें सैडलर आयोग ने निम्न प्रकार से दी हैं:-
- विश्वविद्यालयों को पर्याप्त स्वतंत्रता दी जानी चाहिए, उनके नियमों को उदार बनाया जाना चाहिए तथा विश्वविद्यालय के नियम कठोर नहीं होने चाहिए।
- विश्वविद्यालय के अध्यापक वर्ग के अधिकारों में पर्याप्त वृद्धि की जानी चाहिए उनकी शैक्षिक शर्तें तथा वेतन भत्ते आदि को बढ़ाना चाहिए।
- विश्वविद्यालय में बी.ए.के पाठ्यक्रम की अवधि 3 वर्ष रखी जानी चाहिए और ऑनर्स की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
- विश्वविद्यालयों में विशेषज्ञों की एक समिति बनाई जानी चाहिए, जो प्रोफेसरों और लीडरों की नियुक्ति विश्वविद्यालय में कर सके।
- विभिन्न विषयों के भली-भांति अध्ययन शिक्षण को सुचारू रूप से व्यवस्था की जानी चाहिए।
- विश्वविद्यालय के उप कुलपति का पद वैतनिक कर दिया जाना चाहिए, जबकि विद्यार्थियों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए विश्वविद्यालय में एक स्वास्थ्य शिक्षा संचालक की भी नियुक्ति होनी चाहिए।
- सीनेट के स्थान पर प्रतिनिधि कोर्ट की स्थापना की जानी चाहिए और वह विश्वविद्यालय के आंतरिक प्रशासन का दायित्व संभालने के लिए कार्यकारिणी परिषद सिंडीकेट के स्थान पर बनाई जानी चाहिए।
- विश्वविद्यालय में एक बोर्ड और एक एकेडमिक परिषद की स्थापना भी होनी चाहिए, बोर्ड का उत्तरदायित्व परीक्षाओं का संचालन करना, पाठ्यक्रम का निर्धारण करना अनुसंधान की व्यवस्था करना तथा दीक्षांत समारोह और उपाधि देने संबंधी कार्यो की देखरेख करना होना चाहिए।
सैडलर कमिशन का विश्वविद्यालय शिक्षा पर प्रभाव Impact on university education
सैडलर आयोग की रिपोर्ट का मुख्य आधार कोलकाता विश्वविद्यालय नहीं था परंतु यह समस्या भारतीय विश्वविद्यालयों के लिए ज्योति स्तंभ के रूप में सिद्ध हुई है। इसने भारतीय शिक्षा के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात किया है सैडलर आयोग के सुझावों को ब्रिटिश शासनकाल तो मान ही गया था,
जबकि आज भी इनके संशोधनों को मान्यता दी जाती है। भारतीय शिक्षा के पाठ्यक्रम में शिक्षा विषय को स्थान देने की सिफारिश सैडलर आयोग के द्वारा ही की गई थी।
सैडलर आयोग की सिफारिशें व्यवहारिक प्रकार की थी इसीलिए इसे क्रियान्वित करने में किसी भी प्रकार की असुविधा भी नहीं हुई और इनको लागू करने से विश्वविद्यालयों के संगठन और प्रशासन
में कई सुधार भी देखने को मिले। सैडलर आयोग ने निम्न प्रकार की सिफारिशें दी हैं जिनका सबसे अधिक प्रभाव विश्वविद्यालय शिक्षा पर देखने को मिलता है:-
- सैडलर आयोग ने शिक्षा को जीवन उपयोगी बनाने की दिशा में अच्छी भूमिका निभाई है, ताकि छात्र छात्राएँ बेरोजगार होकर भटकते ना रहे।
- सैडलर आयोग के द्वारा ही विश्वविद्यालय स्तर पर स्त्री शिक्षा और व्यवसायिक शिक्षा की व्यवस्था भी की गई जिससे शिक्षा ने एकांगी स्वरूप को अधिक बल दिया।
- अध्यापकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था सैडलर आयोग का एक महत्वपूर्ण सुझाव था, जिससे शिक्षा का स्तर सुधारा जा सके।
- सैडलर आयोग ने यह भी सिफारिश की थी, कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए जिससे शिक्षा को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सके।
- इस आयोग के तहत विश्वविद्यालय केवल परीक्षा लेने वाली संस्था नहीं होना चाहिए, बल्कि उच्च अध्ययन और अनुसंधान के केंद्र होने चाहिए यह सुझाव सैडलर आयोग ने ही दिया, जिसका प्रभाव देखने को मिल रहा है।
- विश्वविद्यालय पर सरकारी नियंत्रण कम होना चाहिए और विश्वविद्यालयों को अधिक स्वतंत्रता भी प्रदान की जानी चाहिए।
- विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में प्राविधिक, प्रौद्योगिक और व्यवसायिक शिक्षा को उचित स्थान देकर शिक्षा को जीवन उपयोगी बना दिया गया यह प्रयास सैडलर आयोग का ही था।
- छात्रों के स्वास्थ्य उनका निवास आदि के विषय में सुझाव देकर आयोग ने छात्र कल्याण के लिए कार्य किये जिससे विश्वविद्यालय शिक्षा के प्रति छात्रों का रुझान भी हुआ।
दोस्तों आपने यहाँ पर सैडलर आयोग क्या है इसके सुझाव (Sadler commission 1917) के साथ अन्य तथ्य पढ़े। आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
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- हंटर आयोग 1882
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968
- वुड डिस्पैच का घोषणा पत्र
- संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992
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