राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 National Education Policy 2020
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 New Educational policy 2020
शिक्षा से ही हमारे व्यक्तित्व और कृतित्व का निर्माण होता है। इसी को देखते हुये सरकार द्वारा शिक्षा-नीतियां लाई जाती हैं।
वस्तुतः भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों के तहत छः से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान है।
राष्ट्रीय शिक्षा-नीति साल 1986 में सरकार द्वारा लायी गयी थी। फिर 1992 में इसमें कुछ आवश्यक संशोधन किये गये और अब 29 जुलाई, 2020
को एक बार फिर केंद्र सरकार द्वारा भारत की नई शिक्षा-नीति लागू की गई है। इसमें मानव-संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला शिक्षा-विभाग अब स्वतंत्र रूप से शिक्षा-मंत्रालय के तहत आयेगा।
बता दें कि मंत्रालय द्वारा 2019 से ही लोगों से नई शिक्षा नीति के बारे में सुझाव लिया जाना शुरू कर दिया गया था। यह नई शिक्षा नीति प्रख्यात अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।
नई शिक्षा नीति के प्रमुख बदलाव Major changes of new education policy
इसके तहत केंद्र सरकार ने करीब तीन दशक पुरानी शिक्षा-व्यवस्था को बदलते हुये 10+2 वाला 'सिस्टम' हटाकर उसमें 5+3+3+4 जोड़ दिया है।
अब तक सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का एक से ही शुरू मानी जाती थी, पर अब पहले के तीन दर्ज़े प्री-प्राइमरी कहलायेंगे, और उसके बाद कक्षा एक और दो।
यानी अगर सीधे कहें तो अब पांचवीं कक्षा तक प्री-स्कूल, फिर छ: से आठ तक मिडिल और आठवीं से बारह दर्ज़े की पढ़ाई हाईस्कूल कही जायेगी
और इसके बाद स्नातक या ग्रेजुएशन स्तर की पढ़ाई होगी। जिसमें आठवीं कक्षा से ही विद्दार्थियों को अपने मनपसंद विषय को चुनने की आज़ादी होगी
और हर डिग्री चार सालों की होगी। नई शिक्षा नीति के तहत अब विद्दार्थियों को शुरू से ही तीन भाषाओं की शिक्षा मिलेगी। इसमें मातृभाषा में अध्ययन पर भी विशेष जोर दिया गया है।
इसके साथ ही नई शिक्षा नीति के तहत अब विद्दार्थियों को विषय चुनने की स्वतंत्रता अब कहीं ज्यादा बेहतर होगी। यानी छात्रों को विज्ञान वर्ग कला या वाणिज्य
आदि से संबंधित विषयों को चुनने की पूरी आज़ादी होगी। सभी स्नातक स्तर की पढ़ाई में विषयों को 'मेज़र' और 'माइनर' के रूप में चुना जा सकेगा।
इसका मतलब है कि विज्ञान-वर्ग का छात्र विज्ञान के विषयों को 'मेज़र' और साथ ही संगीत आदि कला-वर्ग के विषयों को 'माइनर' विषय के तौर पर चुन सकेगा।
क्रियान्वयन Implementation
विश्वविद्दालय अनुदान आयोग यानी 'यूजीसी' के अध्यक्ष प्रोफेसर धीरेंद्र पाल सिंह के मुताबिक इस नई शिक्षा नीति के कार्यान्वयन को रफ़्तार देने के लिये केंद्र द्वारा राज्य सरकारों और विभिन्न
विश्वविद्दालयों के कुलपतियों से लगातार वार्ता ज़ारी है। साथ ही इसके लिये अलग-अलग स्तर पर नये सिरे से एक नियामक ढांचा बनाने का काम भी प्रगति पर है।
नई शिक्षा नीति में चिकित्सीय व कानूनी शिक्षा को छोड़कर देश के सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को 'भारतीय उच्च शिक्षा परिषद' नामक एकल नियामक तंत्र के अंतर्गत लाने की परिकल्पना की गई है।
विभिन्न शिक्षण-संस्थानों में इसी अकादमिक सत्र से नई शिक्षा नीति से संबंधित पहल शुरू हो चुकी है। प्रयास है कि जुलाई, 2022 से शुरू होने वाले
शैक्षिक-सत्र से नई शिक्षा नीति पूरे देश में लागू हो जाये। फिलहाल कर्नाटक और मध्य प्रदेश में यह नई शिक्षा नीति-2020 लागू की जा चुकी है।
पृष्ठभूमि Background
गौरतलब है कि सन् 1948 में जाने-माने शिक्षाविद् डॉ. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में पहली बार विश्वविद्दालय शिक्षा आयोग गठित हुआ था
और तब से ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर काम ज़ारी है। फिर कोठारी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1968 में इंदिरा गांधी सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति में महत्वपूर्ण बदलाव किये।
आगे चलकर राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते अगस्त, सन् 1985 में 'शिक्षा की चुनौती' नामक एक दस्तावेज़ तैयार किया गया, जिसमें देश भर के तमाम बुद्धिजीवियों के शिक्षा संबंधी विचार शामिल थे
और इसी आधार पर 1986 में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई गई। जिसमें पूरे देश के लिये एकसमान शैक्षिक-प्रणाली को अंगीकार किया गया।
इसके तहत अधिकांश राज्यों ने 10+2+3 की शिक्षा-प्रणाली अपनाई। जो अब तक चली आ रही थी। 1992 में इसमें कुछ आवश्यक संशोधन भी किये गये
और अब जुलाई, 2020 में मोदी-सरकार द्वारा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित की गई है, जिसमें उक्त शैक्षिक ढांचे में महत्वपूर्ण बदलाव लाया गया है।
नई शिक्षा नीति, 2020 की कुछ खास बातें Some highlights of the New Education Policy, 2020
इस नई शिक्षा नीति के तहत शिक्षा पर व्यय जीडीपी यानी देश के सकल घरेलू उत्पाद का छः प्रतिशत किया जाना प्रस्तावित है,
जो फिलहाल साढ़े चार प्रतिशत के लगभग है। इसके अलावा सन् 2030 तक सकल नामांकन अनुपात को सौ फ़ीसदी तक लाने का लक्ष्य भी है।
नई शिक्षा नीति में संगीत, खेल और योग जैसे विषयों को सहायक पाठ्यक्रम की बजाय मुख्य पाठ्यक्रम में ही शामिल किया जायेगा।
साथ ही नई शिक्षा नीति में शोध से संबंधित एमफिल की व्यवस्था समाप्त कर दी गई है, और इसके लिये छात्र अब तीन वर्षीय स्नातक और दो वर्षीय स्नातकोत्तर
पाठ्यक्रम को पूरा करने के बाद पीएचडी का कोर्स कर सकते हैं। नई शिक्षा नीति में एक ख़ास बात ये है कि इसमें शिक्षकों के प्रशिक्षण पर भी
विशेष बल दिया गया है। इसके लिये शिक्षक-प्रशिक्षण व ऐसे अन्य कार्यक्रमों को कॉलेज या विश्वविद्दालय स्तर पर शामिल किया जायेगा।
इसके अतिरिक्त स्कूलों-कॉलेजों को मनमाने तरीके से फीस वसूलने पर रोक लगाई जायेगी। नई शिक्षा नीति के तहत यह कोशिश की गई है कि विद्दार्थी रटने की बजाय समझकर पढ़ने की आदत डालें।
साथ ही उनमें लिखने की कला भी विकसित हो। इसके अतिरिक्त अब तक उच्च शिक्षा के शिक्षार्थियों द्वारा किसी कारण से पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने पर उन्हें कुछ नहीं हासिल हो पाता था।
पर नई शिक्षा नीति के तहत पहले साल की पढ़ाई पूरी करने पर सर्टीफिकेट यानी प्रमाण-पत्र, दूसरे वर्ष डिप्लोमा और तीन साल बाद डिग्री दिये जाने का प्रावधान किया गया है।
निष्कर्ष Conclusion
जुलाई, 2020 में घोषित इस नई शिक्षा नीति को लेकर लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियायें सामने आई हैं। जहां कुछ इसे शिक्षा के क्षेत्र में लाया गया
एक बड़ा सुधार मानते हैं वहीं कुछ अन्य इसकी कड़ी आलोचना भी कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस नीति से विश्वविद्दालय अपनी स्वायत्तता खो देंगे।
पर विषयों को चुनने की आज़ादी और सारे देश के लिये एक समान शैक्षिक-प्रणाली और एक नियामक तंत्र स्थापित होने से नई शिक्षा नीति की प्रशंसा भी की जा रही है। शिक्षा पर
सार्वजनिक व्यय बढ़ाकर छः फीसदी करने की बात भी वर्षों से चल रही है। हालांकि नई शिक्षा नीति, 2020 के प्रभावों को लेकर कुछ भी साफतौर पर कहना अभी ज़ल्दबाजी ही होगी।
दोस्तों आपने यहाँ नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (New education policy 2020) के बारे में पढ़ा। आशा करता हुँ, आपको यह लेख पसंद आया होगा।
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