पाठ योजना क्या है इसकी आवश्यकता what is a lesson plan its need
पाठ योजना क्या है what is a lesson plan
पाठ योजना किसे कहते है - जब से मनुष्य ने धरती पर पैर रखा है तब से मनुष्य हमेशा ही प्रगति के पथ पर अग्रसर रहा है।
उसने अपने जीवन में विभिन्न प्रकार की सफलताओं और असफलताओं का सामना भी किया है। किंतु मनुष्य ने सफलता तब मिली जब उसने उस सफलता को प्राप्त
करने के लिए एक रूपरेखा एक योजना (Plan) तैयार की तथा उस योजना के अनुसार ही कार्य किया। उसी प्रकार से शिक्षण में सफलता के लिए पाठ योजना शिक्षण विधि है।
पाठ योजना शिक्षण पद्धति (Teaching Mathod) का एक महत्वपूर्ण आयाम माना जाता है, क्योंकि यह एक ऐसी योजना है,
जिसमें शिक्षक अपने द्वारा पढ़ाया जाने वाला पाठ विषय वस्तु की पहले से ही रूपरेखा अर्थात उसकी योजना बना लेता है,
कि उसे अपने शिक्षण में क्या पढ़ाना है? किस-किस प्रकार की वस्तुओं का उपयोग करना है? शिक्षार्थियों का स्तर कैसा है? तथा उस पाठ्य विषय वस्तु को बाहरी परिवेश छात्र के पूर्व ज्ञान से कैसे जोड़ना है,
उक्त बिन्दुओ के आधार पर पाठ योजना इस प्रकार से तैयार की जाती है, कि शिक्षा का शिक्षण अधिक प्रभावशाली और सफल रहता है, इस समस्त प्रक्रिया को ही पाठ योजना कहा जाता है।
साधारण शब्दों में कहा जा सकता है, कि पाठ योजना किसी भी विषय वस्तु की छोटी सी इकाई है, जिसमें शिक्षक निश्चित समय में छात्रों को पढ़ाता है,
क्योंकि यह शिक्षक के लिए बहुत ही आवश्यक होता है कि उसे क्या पढ़ाना है? किस प्रकार से पढ़ाना है? किस-किस कौशलों का उपयोग करना है? ताकि शिक्षा ग्रहण करने वाले शिक्षार्थी उस विषय वस्तु को आसानी से ग्रहण कर सके आसानी से सीख सकें।
बोसिंग के अनुसार - पाठ योजना वह शीर्षक होता है, जो अभिप्राय उद्देश्य के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसका तात्पर्य होता है,
कि पाठ योजना के माध्यम से क्या-क्या उपलब्धियाँ प्राप्त की जानी है और प्रतिदिन क्रियाओं द्वारा शिक्षा का मार्गदर्शन में उन लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।
पाठ योजना का विकास Development of lesson plan
पाठ योजना शिक्षण कौशल को और बेहतर बनाने वाली एक पद्धति होती है, जिसका विकास गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के फलस्वरुप हुआ।
गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के अनुसार हमारा ध्यान किसी आकृति के अंगों की अपेक्षा उसके पूर्ण की ओर आकर्षित करता है।
किसी भी आकृति का प्रत्यक्षीकरण करने में हमारा ध्यान पहले उसके पूर्ण स्वरूप पर जाता है, इसके पश्चात हम उसके विभिन्न अंगों का विश्लेषण करते हैं।
इस प्रकार गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के अनुसार हम प्रत्यक्षीकरण में पूर्ण की अनुभूति इकाई की सहायता से करते हैं। इस इकाई के अंतर्गत ऐसी सार्थक क्रियाओं का परस्पर संबंध इस प्रकार से स्थापित किया जाता है,
कि इनकी सहायता से विद्यार्थियों में उपयुक्त सीखने के अनुभव उत्पन्न होते हुए उनके व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन हो जाएँ
इस प्रकार गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के फलस्वरुप इकाई योजना के प्रत्यक्ष का विकास हुआ। गेस्टाल्ट अधिगम सिद्धांत के अनुसार इकाई पाठ योजना को दो प्रकार से विभाजित किया जाता है।
पहली इकाई योजना के अंतर्गत पाठक वस्तु तथा सूचना का महत्वपूर्ण स्थान होता है, जिसको हरबर्ट उपागम कहा जाता है।
जबकि दूसरी इकाई योजना के अंतर्गत अनुभवों को प्राथमिकता दी जाती है, जिसे डीबी तथा किलपैट्रिक उपागम के नाम से जाना जाता है।
पाठ योजना के जनक कौन हैं Father of lesson plan
पाठ योजना शिक्षा में एक महत्वपूर्ण प्रभावशाली विधि होती है, जिसके जनक गेस्टाल्टवादी हरबर्ट महोदय है। हरबर्ट का पूरा नाम हरबर्ट स्पेंसर (Herbert Spencer) है,
जिनका जन्म 8 दिसंबर 1930 में इंग्लैंड में हुआ था। इन्होंने अपने जीवन में प्रमुख रूप से एक शिक्षाविद, दार्शनिक तथा समाजशास्त्री की भूमिका निभाई।
शिक्षाकार्य को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए हरबर्ट महोदय ने पाठ योजना का प्रतिपादन किया। उन्होंने कहा कि छात्र हमेशा शिक्षक द्वारा प्रदान की गई सूचनाओं को ग्रहण करता है,
इसलिए शिक्षक को शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए जिस विषय वस्तु को वह पढ़ाना चाहता है, उसका पाठ योजना तैयार करना चाहिए।
जिसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के शिक्षण कौशल, पाठ की विषय वस्तु, वातावरण, सामंजस्य आदि को ध्यान में रख सकते है और शिक्षण प्रभावशाली बना सकता है।
पाठ योजना की आवश्यकता Needs of lesson plan
पाठ योजना की आवश्यकता क्यों है इसके बारे में योकम और सिंपसन (Yokem and Simpson) ने कहा है, कि सभी शिक्षकों द्वारा किसी न किसी प्रकार की पाठ योजना अवश्य तैयार की जानी चाहिए।
क्योंकि इसके कुछ निश्चित कार्य होते हैं, जो अच्छे शिक्षण के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और आवश्यक हो जाते हैं। योकम तथा सिंपसन ने बताया है, कि पाठ योजना के लिए निम्न प्रकार के ऐसे कार्य हैं, जो इसकी आवश्यकता को प्रमाणित करते हैं।
पाठ योजना अध्यापक के शिक्षण कार्य को नियंत्रित नियोजित और व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
पाठ योजना के द्वारा अध्यापक के द्वारा शिक्षण कार्य किए जाने में जो विषय वस्तु उपयोग में लाई जाती है, वह पाठ योजना में निश्चित हो जाती है, जिसके फलस्वरूप शिक्षक शिक्षण कार्य में विचलित नहीं होता।
इस योजना के द्वारा अध्यापक शिक्षण कार्य को निश्चित सीमाओं के अंदर करता है और उसकी शक्ति नष्ट होने से तथा समय भी नष्ट होने से बच जाता है।
पाठ योजना के द्वारा अध्यापक अपने अध्यापन में निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर बना रहता है।
पाठ योजना के द्वारा ही अध्यापक को छात्रों के ज्ञान, उनकी आदतों, योग्यताओं आदि की जानकारी भी प्राप्त हो जाती है।
पाठ योजना के द्वारा शिक्षक को सर्वोत्तम शिक्षण विधियों का चयन करना होता है, जिससे उनका शिक्षण कार्य अत्यधिक प्रभावी और उद्देश्य पूर्ण हो जाता है।
पाठ योजना के द्वारा जो शिक्षार्थी शिक्षा ग्रहण करते हैं इसकी जाँच विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं के आधार पर हो जाती है।
पाठ योजना में प्रश्न उत्तर कौशल का उपयोग करके अध्यापक दृश्य, श्रव्य सामग्री का भी उपयोग कर शिक्षण को अधिक प्रभावशाली बना सकता है।
इसके अंतर्गत शिक्षक अपने शिक्षण की सफलता और असफलता के बारे में स्वयं ही मूल्यांकन कर सकता है।
पाठ योजना के द्वारा शिक्षा निश्चित और व्यवस्थित होताी है और अध्यापक में आत्मविश्वास जागता है।
इसके द्वारा शिक्षक को अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता प्राप्त होती है तथा शिक्षक अस्त-व्यस्त शिक्षण नहीं करता और पुनरावृति से बच जाता है।
पाठ योजना के लाभ Benifits of lesson plan
शिक्षक विषय वस्तु का प्रस्तुतीकरण क्रमबद्ध तार्किक तथा प्रभावशाली ढंग से बड़ी आसानी से और सफलतापूर्वक कर सकता है।
पाठ योजना के द्वारा उद्देश्यों की प्राप्ति सरल हो जाती है, निश्चित क्रियाओं की व्यवस्था छात्रों की रूचि और उनकी योग्यताओं के आधार पर होती है।
इसका मुख्य लाभ है, कि यह एक सुनिश्चित, नियोजित पद्धति है, जिससे अध्यापक अपने शिक्षण के दौरान विचलित नहीं होता और उसमें आत्मविश्वास की भावना प्रबल हो जाती है।
निश्चित शिक्षण होने पर तथा पूर्व नियोजित होने पर इसमें पुनरावृति की आवश्यकता नहीं होती इससे अध्यापक का समय और ऊर्जा अधिक नष्ट नहीं होती है।
पाठ योजना के द्वारा जो शिक्षण कार्य होता है, वह उद्देश्य पूर्ण होता है। इसलिए छात्रों में उस विषय शिक्षण कार्य के प्रति रुचि हमेशा बनी रहती है।
इसके द्वारा समय साधनों की बचत होती है तथा शिक्षण कार्य प्रभावशाली होता है और विद्यार्थी आसानी से विषय वस्तु को ग्रहण करते हैं।
दैनिक पाठ योजना Daily lesson plan
दैनिक पाठ योजना के जनक हरबर्ट स्पेंसर हैं। उन्होंने कहा है, कि दैनिक पाठ योजना वह पाठ योजना है, जो प्रत्येक दिन शिक्षक के द्वारा बनाई जाती है, कि उससे अमुक दिन कौन सी विषय वस्तु पढ़ाना है?
साधारण शब्दों में कहा जा सकता है, कि प्रत्येक दिन कक्षा में शिक्षक के द्वारा पढ़ाए जाने बाली विषय वस्तु का छोटा सा भाग पूर्व में ही योजनाबद्ध तरीके से तैयार किया जाता है,
जिसे दैनिक पाठ योजना कहा जाता है। इसके द्वारा कक्षा का नियंत्रण, कक्षा में अनुशासन तथा शिक्षक का शिक्षण प्रभावशाली होता है।
सप्ताहिक पाठ योजना Weekly lesson plan
सप्ताहिक पाठ योजना वह पाठ योजना होती है, जिसे शिक्षक यह ध्यान में रखकर बनाता है, कि उसे एक सप्ताह के अंदर कौन सी
विषय वस्तु को किस प्रकार से पढ़ाना है? साप्ताहिक पाठ योजना के अंतर्गत विषय वस्तु का चयन, उनका मूल्यांकन आदि को समाहित किया जाता है।
मासिक पाठ योजना Monthly lesson plan
मासिक पाठ योजना वह होती है, जो शिक्षक के द्वारा एक माह में क्या शिक्षण कार्य किया जाना है, इसको ध्यान में रखकर बनाई जाती है।
मासिक पाठ योजना विषय के प्रत्येक प्रश्न पत्र तथा संबंधित पाठक पुस्तकों के अनुसार तैयार होती है, जिसमें मूल्यांकन के बारे में भी उल्लेख किया जाता है। मासिक पाठ योजना का गुण लचीलापन होता है।
वार्षिक पाठ योजना Annual lesson plan
समान्यतः सभी विद्यालयों में शिक्षण कार्य जुलाई से मई तक चलता है। इसलिए पूरे वर्ष की जो शिक्षण योजना बनाई जाती है, उसे वार्षिक पाठ योजना कहा जाता है। वार्षिक पाठ योजना प्रत्येक कक्षा के लिए विषयवार
बनाई जाती है, तथा यह लचीली और व्यावहारिक होती है। वार्षिक योजना के अंतर्गत वर्ष में कार्य दिवस, उद्देश्यों का विभाजन, शिक्षण कालांश, शिक्षण सामग्री, आदि का समावेश होता है।
हरबर्ट का पंचपदी सिद्धांत Herbert's Panchapadi Theory
हरबर्ट द्वारा दिए गए पाठ योजना से संबंधित पंचपदी सिद्धांत को हरबर्ट उपागम, हरबर्ट का पंचपदी उपागम, पंचपदी शिक्षा प्रणाली आदि के नाम
से भी जाना जाता है। यह विधि सबसे पहले जॉन फ्रेडरिक हरबर्ट ने 1838 में दी थी जो जर्मनी के दार्शनिक तथा शिक्षाशास्त्री थे, इन्होने इसके चार पद दिए थे।
- स्पष्टता
- संबद्धता
- व्यवस्था
- विधि
जॉन फ्रेडरिक हरबर्ट के सबसे प्रिय तीन शिष्य थे राइन, जिलर तथा हरबर्ट स्पेंसर। जॉन फ्रेडरिक हरबर्ट के चार पदों में से पहले पद स्पष्टता को उनके शिष्य जिलर ने दो भागों में बाँट दिया
- प्रस्तावना
- प्रस्तुतीकरण
किन्तु उनके दुसरे शिष्य राइन ने उपर्युक्त दोनों पदों के बीच एक तीसरा पद उद्देश्य कथन जोड़ दिया।
- प्रस्तावना
- उद्देश्य कथन
- प्रस्तुतीकरण
इनके साथ संबद्धता, व्यवस्था तथा विधि को मिलाकर कुल छै: पद हो गए। इसके बाद उनके तीसरे शिष्य हरबर्ट स्पेंसर ने सभी छै: पदों को संशोधित किया और पाँच पद दिए तथा इस विधि को उन्होंने पंचपदीय तथा अपने गुरु के सम्मान में हरबर्ट उपागम नाम दिया।
हरबर्टीय विधि Herbert's method
हरबर्ट विधि को पंचपदी शिक्षा प्रणाली, हरबर्ट का लेसन प्लान आदि के नाम से भी जाना जाता है, जिसके निम्न पाँच पद है:-
प्रस्तावना - हरबर्ट उपागम का पहला पद प्रस्तावना होता है, जो छात्रों के पूर्व ज्ञान से संबंधित होता है। इसमें छात्रों से प्रश्न पूछे जाते हैं, जो छात्रों के पूर्व ज्ञान से जुड़े हुए होते हैं। अगर प्रस्तावना सफल होती है, तो पाठ योजना भी सफल होने का निश्चय हो जाता है।
प्रस्तुतीकरण - प्रस्तुतीकरण हरबर्ट उपागम का दूसरा पद होता है, जिसमें विषय वस्तु से संबंधित उद्देश्य कथन होता है। इसके साथ पाठय विषय वस्तु का प्रस्तुतीकरण विभिन्न कौशलों के माध्यम से प्रभावपूर्ण तरीके से दिया जाता है।
तुलना - हरबर्ट उपागम का तीसरा पद तुलना होता है, जिसके अंतर्गत प्रस्तुतीकरण में जहाँ - जहाँ पर कठिनाइयाँ होती हैं, वहाँ पर दृश्य, श्रव्य सामग्री के माध्यम से उस विषय वस्तु को स्पष्ट किया जाता है।
सामान्यकरण - हरबर्ट उपागम का यह चौथा पद होता है जिसमें मुख्य रुप से पढ़ाए गए विषय के प्रति छात्र निष्कर्ष पर पहुंचते हैं।
प्रयोग - हरबर्ट उपागम का यह पाँचवा पद है, जिसके अंतर्गत प्रस्तुतीकरण तथा तुलना के माध्यम से नये ज्ञान को अर्जन करने के बाद उसको व्यवहार में लाने का गुण उत्पन्न किया जाता है, जिसमें छात्रों को अभ्यास कार्य और गृह कार्य देते हैं।
दोस्तों आपने इस लेख में पाठ योजना क्या है इसकी आवश्यकता (what is a lesson plan its need) के साथ अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों को पड़ा। आशा करता हूँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
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