वुड डिस्पैच घोषणा पत्र wood dispatch manifesto 1854
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है, आज के इस लेख वुड डिस्पैच घोषणा (wood dispatch manifesto) पत्र में। दोस्तों इस लेख के माध्यम से आप भारत में भारतीय शिक्षा
व्यवस्था में नई शिक्षा व्यवस्था जिसे भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा भी कहा जाता है के साथ ही वुड डिस्पैच घोषणा पत्र क्या है?
के बारे में तथा इसकी सिफारिशों के बारे में जानेंगे। तो दोस्तों आइए शुरू करते है, आज का यह लेख वुड डिस्पैच घोषणा पत्र:-
भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा क्या था what was magna carta of indian education
वुड डिस्पैच घोषणा पत्र 1854 को ही भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा कहा जाता है। चार्ल्स वुड ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड ऑफ कंट्रोल के अध्यक्ष थे।
इन्हीं की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जिसका उद्देश्य भारतीय शिक्षा व्यवस्था की जाँच करना था।
उन्होंने भारतीय शिक्षा व्यवस्था की जांच करके भारत में शिक्षा योजना में सुधार तथा उसे सुदृढ़ बनाने के लिए सुझाव तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी (Lord Dalhousie) को 1854 में भेजा।
भारतीय शिक्षा के विकास के लिए भेजी गई इस सुझाव, रिपोर्ट को ही वुड डिस्पैच या वुड का घोषणा पत्र कहा जाता है।
और इस घोषणा पत्र को ही भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस घोषणा पत्र में व्यवस्थित संतुलित और बहुआयामी शिक्षा का प्रस्ताव था।
तथा इस घोषणा पत्र में कोई दोष नहीं था यह पूर्णता गुणयुक्त था। इसीलिए भारतीय शिक्षा व्यवस्था की दृष्टि से इसे शिक्षा के इतिहास में नए युग का प्रारंभ भी माना गया था।
तथा इस घोषणापत्र को भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा कहा जाता है। किंतु इस घोषणापत्र में सब कुछ होने के बावजूद भी हम इसे भारतीय शिक्षा का अधिकार पत्र या मैग्नाकार्टा नहीं कह सकते।
क्योंकि इसके कारण ही भारतीय शिक्षा प्रणाली में विभिन्न प्रकार के दोष उत्पन्न हो गए हैं। जो आज तक विद्यामान है।
वुड् डिस्पैच क्या था what was wood dispatch manifesto 1854
शिक्षा के क्षेत्र में सन 1833 से 1853 के मध्य मैकाले का स्मरण पत्र, मैकाले की शिक्षा पद्धति लागू रही।
किंतु लगातार भारतीयों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए माँग उठती जा रही थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के संचालक भी यह सोचने पर मजबूर हो गए थे
कि अब भारतीयों द्वारा बढ़ने वाली शिक्षा की मांग को नकारा नहीं जा सकता। और यदि भारतीयों द्वारा शिक्षा की उठने वाली मांग को नकारा जाता है,
तो कई प्रकार के गंभीर परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। इसलिए सन 1853 में ईस्ट इंडिया कंपनी के पास ब्रिटिश शासन से एक आज्ञा पत्र आया।
इस आज्ञा पत्र के द्वारा कंपनी के प्रशासन में भी कुछ सुधार हुआ। किन्तु कंपनी के अपने अनुभव और ब्रिटिश शासन के दबाव के फलस्वरूप
ईस्ट इंडिया कंपनी को भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करने पर विवश होना पड़ा। तथा शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति की जांच करने के लिए संसद सदस्यों की एक समिति का गठन किया गया।
इस समिति के अध्यक्ष थे चार्ल्स वुड। समिति ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था, तथा नीति की भलीभांति जांच की और कंपनी के संचालकों को 1854 में अपनी रिपोर्ट सौंप दी।
भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति की जांच करने वाली समिति के अध्यक्ष चार्ल्स वुड थे। इन्हीं के नाम प्रस्तुत रिपोर्ट को चार्ल्स वुड का घोषणा पत्र या वुड डिस्पैच घोषणा पत्र कहा जाता था।
वुड डिस्पैच के घोषणा पत्र की सिफारिशें wood Dispatch's manifesto recommendations
चार्ल्स वुड की अध्यक्षता में बनाई गई समिति ने भारत में शिक्षा व्यवस्था तथा नीति की जांच की तथा भारतीय शिक्षा को और अधिक स्थायित्व और अच्छा बनाने के निम्नलिखित सिफारिशें दी:-
शिक्षा का उद्देश्य
सिमति ने शिक्षा के उद्देश्य का स्पष्टीकरण करते हुए बताया कि भारतीयों को वह शिक्षा दी जानी चाहिए, जो उनके जीवन में उपयोगी हो। जिससे उनका बौद्धिक, नैतिक और आर्थिक स्तर ऊंचा उठ सके।
भारतीयों को इस प्रकार से शिक्षा दी जानी चाहिए जो उनमें प्रशासनिक क्षमता का विकास कर सके तथा प्रशासन को मजबूत और व्यवस्थित बनाने में सहयोग दे सके।
पाठ्यक्रम
चार्ल्स वुड घोषणा पत्र के आधार पर पाठ्यक्रम में अंग्रेजी भाषा पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान संबंधित विषयों को सम्मिलित किया गया है।
किंतु भारत वासियों का आदर और उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए पाठ्यक्रम में संस्कृत, अरबी भाषा तथा अन्य भारतीय भाषाओं को भी समाहित किया गया था।
शिक्षा का माध्यम
चार्ल्स वुड के घोषणा पत्र में शिक्षा के माध्यम को अंग्रेजी और अंग्रेजी के साथ भारतीय भाषाओं को भी स्वीकार किया गया। जिसमें अंग्रेजी भाषा का ज्ञान उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों के लिए आवश्यक था।
पाश्चात्य साहित्य, विज्ञान आदि का उच्च ज्ञान का माध्यम अंग्रेजी बनाया गया। भारतीय स्कूलों में अंग्रेजी भाषा के साथ भारतीय भाषा का भी प्रयोग किया जाने लगा।
शिक्षा विभाग
इस घोषणापत्र में सरकार को यह भी सलाह दी गई, कि वह भारत में शिक्षा विभाग की स्थापना करें। प्रत्येक प्रांत में एक शिक्षा विभाग होना आवश्यक है।
शिक्षा विभाग का अध्यक्ष जन शिक्षा संचालक होगा, तथा संचालक के नीचे उपसंचालक और निरीक्षक काम करेंगे।
एक प्रांत की शिक्षा का पूरा उत्तरदायित्व संचालक के सिर पर होगा तथा प्रांत का संचालक अपनी शिक्षा संबंधी रिपोर्ट प्रतिवर्ष मुख्य संचालक को सुपुर्द करेगा।
विश्वविद्यालय शिक्षा
इस समिति के अनुसार बताया गया कि उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता और मुंबई में विश्वविद्यालयों की स्थापना की जानी चाहिए।
जो लंदन विश्वविद्यालय पर आधारित होंगे इसमें उन विषयों को पढ़ाया जाएगा जिनकी व्यवस्था कॉलेजों में नहीं है। विश्वविद्यालय में प्रमुख रूप से कानून और इंजीनियरिंग की शिक्षा दी जाएगी।
जबकि विश्वविद्यालय के प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए विश्वविद्यालय के स्टाफ चांसलर, वाइस चांसलर तरफ फेलोज की भी नियुक्ति की जानी चाहिए।
क्रमबध्य विद्यालयों की स्थापना
वुड समिति ने यह भी सलाह दी, कि शिक्षा के क्षेत्र में क्रमबद्धता का होना बहुत ही आवश्यक है। इसलिए सबसे पहले वर्णमाला का ज्ञान कराना चाहिए, फिर प्राथमिक शिक्षा दी जानी चाहिए,
इसके बाद मिडिल स्कूल और हाई स्कूल की शिक्षा उपयुक्त होती है। तदुपरांत कॉलेज शिक्षा और अंत में विश्वविद्यालय शिक्षा का प्रावधान होगा।
सर्वसाधारण की शिक्षा
डिस्पैच घोषणा पत्र में यह भी बताया गया कि जनसाधारण को व्यवहारिक और लाभप्रद शिक्षा दी जानी चाहिए।
जो विद्यालय जनसाधारण की शिक्षा के लिए प्रचार प्रसार और कार्य कर रहे हैं। उनको प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। वुड डिस्पैच समिति ने निस्यंदन सिद्धांत की घोर आलोचना की है।
शैक्षिक अनुदान
घोषणा पत्र में यह भी वर्णन किया गया,कि इंग्लैंड के शैक्षिक अनुसंधान नियमावली के अनुसार ही भारतीय सरकार को अनुदान की नियमावली का निर्माण करना चाहिए।
जिससे विभिन्न शैक्षिक कार्यों के लिए अनुदान की व्यवस्था हो सके। छात्रों के लिए छात्रवृत्ति, शिक्षकों का वेतन, पुस्तकालय संबंधी, विद्या भवन निर्माण फर्नीचर के लिए अलग-अलग अनुदानों की व्यवस्था हो
जिससे व्यक्तिगत संस्थान भी शिक्षा के प्रचार प्रसार में आगे आएंगे। क्योंकि शिक्षा संस्थाओं में दिए जाने वाले अनुदान शिक्षा प्रसार के क्षेत्र में अधिक महत्व रखते हैं।
स्त्री शिक्षा
वुड समिति ने स्त्री शिक्षा का समर्थन करते हुए स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहित करने और उसका प्रचार करने का भी निर्देश दिया है।
वुड समिति ने गवर्नर जनरल की घोषणा जो बंगाल में स्त्री शिक्षा के समर्थन में थी। उसका स्वागत किया है, तथा शेष प्रांतों में भी स्त्री शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।
रोजगार और शिक्षा
वुड डिस्पैच घोषणा पत्र में यह भी सुझाव दिया गया, कि विद्यालय में उन कर्मचारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए जो शिक्षित हैं।
शिक्षा का उद्देश्य नौकरी पाने के साथ मानवीय गुणों का विकास और जीवन को सफल बनाना भी होना चाहिए।
व्यवसायिक शिक्षा
डिस्पैच समिति के द्वारा यह भी सुझाव दिया गया है, छात्रों को अध्ययन के साथ व्यावसायिक शिक्षा भी प्रदान की जानी चाहिए।
इसके लिए भारत में व्यवसाय के स्कूल और कॉलेजों की स्थापना करनी होगी। जिससे भारत में बेकारी और बेरोजगारी की समस्या नहीं बढ़ेगी तथा और शिक्षित भारतीय शासन के प्रति स्वामी भक्त बने रहेंगे।
भारतीय भाषाओं में पुस्तक प्रकाशन
इस समिति के द्वारा यह भी महत्वपूर्ण सुझाव दिया गया, कि पाश्चात्य साहित्य और यूरोपीय विज्ञान के प्रसार के लिए तत्सम संबंधित पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद और प्रकाशन करना उचित होगा।
सभी सिफारिशें वुड डिस्पैच घोषणा पत्र के द्वारा तत्कालीन सरकार को दी गई थी। शिक्षा के इतिहास में विदेशियों द्वारा उठाया गया यह एक सबसे अहम कदम था।
इस घोषणा पत्र के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में एक नई दिशा नया लक्ष्य और नई गति उत्पन्न हो गई थी। वुड डिस्पैच घोषणा पत्र के द्वारा नएजीवन, नई स्फूर्ति शिक्षा के क्षेत्र में थी।
क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र में यह घोषणा पत्र मार्टमैन,पैरी और विलसन जैसे उच्च कोटि के विद्वानों ने बड़ी ही मेहनत के साथ तैयार किया था।
वुड घोषणा पत्र दोष रहित ना होकर पूर्ण तरह से गुणयुक्त घोषणापत्र था। और यह पत्र तैयार करने में कोई भी भारतीय विद्वान शामिल भी नहीं था।
फिर भी उन्होंने भारतीय संस्कार भारतीय शिक्षा जगत भारतीय साहित्य का विशेष ध्यान रखा। इसलिए वुड डिस्पैच भारतीय शिक्षा व्यवस्था में एक नया जीवन नये सवेरे जैसा था।
दोस्तों इस लेख में आपने भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा वुड डिस्पैच घोषणा पत्र (wood despatchwood despatch Manifesto) पढ़ा। आशा करता हूँ यह लेख आपको अच्छा लगा होगा।
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