मैकाले का विवरण पत्र तथा आलोचना Macaulay's brochure and critique
हैलो दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, हमारे इस लेख मैकाले का विवरण पत्र तथा आलोचना (Macaulay brochure and critique) में। दोस्तों इस लेख में आप
भारतीय शिक्षा के प्रवृतक मैकाले की शिक्षा पद्धति क्या थी। उसके गुण आलोचना तथा भारतीय शिक्षा पर इसका प्रभाव पढ़ेंगे। तो दोस्तों पढ़ते है, यह लेख मैकाले का विवरण पत्र तथा आलोचना:-
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मैकाले का निस्यंदन सिद्धांत Macaulay's Filtration theory
निस्यंदन सिद्धांत मैकाले के द्वारा दिया गया भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐसा सिद्धांत था। जिसमें उच्च और निम्न वर्ग के लोगों के बीच शिक्षा को लेकर मतभेद उत्पन्न कर उनको दो वर्गों में विभाजित कर दिया था।
निस्यंदन शब्द अंग्रेजी के फिल्ट्रेशन से लिया गया है। जिसका अर्थ होता है "छानना" (Filteration) अर्थात निस्यंदन सिद्धांत वह सिद्धांत था जिसमें मैकाले ने अपनी चालाकी से उच्च वर्ग के लोगों के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था की।
जबकि यह भी कहा कि उच्च वर्ग के लोग शिक्षित (Educated) होने से निम्न वर्ग के लोग स्वतः ही शिक्षित हो जाएंगे। शिक्षा सभी मनुष्यों का मूल अधिकार है, क्योंकि शिक्षा ही एक वह माध्यम है
जिसके द्वारा व्यक्ति अपना सर्वागीण विकास कर सकता है, किंतु उस समय भारत में ईस्ट इंडिया का प्रभुत्व था. और कंपनी शिक्षा के क्षेत्र में अधिक व्यय नहीं करना चाहती थी।
इसलिए मेंकाले का निस्यंदन सिद्धांत (Menkale's filtration principle) लागू किया गया, जिससे भारतीय दो वर्गों में शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से बट गए।
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प्राच्य पाश्चात्य शिक्षा विवाद Oriental Western education controversy
ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभुत्व संपूर्ण भारत पर हो गया था। तो संपूर्ण देश पर शासन तथा राजनीति करने के लिए उसे एक पढ़े लिखे और कार्य कुशल वर्ग की आवश्यकता होने लगी थी।
ईस्ट इंडिया कंपनी उन व्यक्तियों का निर्माण करना चाहती थी जो उनके विभिन्न प्रकार के प्रशासनिक कार्यों में उनकी मदद कर सकें।
इसीलिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1813 का चार्टर अधिनियम (Charter Act 1813) में भारतीय शिक्षा के लिए ₹100000 का प्रावधान रख।
भारत के लोग शिक्षित होकर ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के प्रशासनिक कार्य तथा पदों पर कार्य कर सकें।
किंतु उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी के सामने यह समस्या उत्पन्न हो गई कि भारत में शिक्षा का प्रारूप किस प्रकार का होना चाहिए, क्योंकि उस समय शिक्षा के संदर्भ में दो पक्ष थे। एक पक्ष था प्राच्यवादियों का
जबकि दूसरा पक्ष था पाश्चात्यवादियों का। प्राच्यवादी चाहते थे, कि भारत में शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा में होनी चाहिए और उन्हें पारंपारिक ज्ञान और शिक्षा दी जानी चाहिए।
प्राच्यवादी शिक्षा के समर्थकों में विलियम जोंस, एचएच विल्सन, विलियम प्रिंसेप, चार्ल्स विलकिंस आदि थे। जबकि पाश्चात्यवादी चाहते थे, कि भारतीय शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी बनाया जाए।
शिक्षा में पश्चिमी विज्ञान, तकनीकी के साथ व्यबसायिक शिक्षा का भी प्रवेश किया जाए। तथा भारत परिषद ने पाश्चात्यवादियों के पक्ष में अपना फैसला सुनाया और पाश्चात्यवादी शिक्षा अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम 1935 पारित कर दिया गया।
मैकाले का विवरण पत्र क्या है what is macaulay's brochure
जिस समय भारत में प्राच्य पाश्चात्य शिक्षा का विवाद अपनी चरम स्थिति पर था। उसी समय 10 जून 1834 को लॉर्ड मैकाले गवर्नर जनरल की काउंसिल के एक कानूनी सदस्य के रूप में भारत आए।
लॉर्ड मैकाले अंग्रेजी का परम विद्वान था तथा उसमें यूरोपीय श्रेष्ठता और जातीय दर्प कूट-कूट कर भरा हुआ था। लॉर्ड मैकाले एक महान कूटनीतिज्ञ और अच्छा वक्ता भी था
और ब्रिटिश साम्राज्य युग का प्रतिनिधित्व करता था, जबकि अंग्रेज अपने साहित्य एवं संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ मानते थे।
उस समय भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैटिंग (Lord William Batting) थे, जिन्होंने प्राच्य पाश्चात्य विवाद को समाप्त करने के लिए तथा 1813 की आज्ञा पत्र की शिक्षा संबंधी धारा की व्याख्या करने के लिए
और ₹100000 धन को व्यय करने के संबंध में लॉर्ड मेकाले से शिक्षा के क्षेत्र में कानूनी सलाह मांगी। लॉर्ड मैकाले ने 2 फरवरी 1835 को अपनी सलाह उक्त विषय पर लार्ड विलियम बैंटिंग को सुपुर्द करदी।
जिसे सुप्रसिद्ध मैकाले विवरण पत्र, मैकाले स्मरण पत्र कहा जाता है। मैकाले विवरण पत्र गवर्नर जनरल की काउंसिल के सम्मुख प्रस्तुत हुई जिसमें मैकाले के निम्न तर्क थे:-
मैकाले का स्मरण पत्र Macaulay's brochure
मैकाले ने प्राच्य साहित्य को बेकार बताया और अंग्रेजी भाषा द्वारा पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान की शिक्षा पर बल देते हुए निम्न प्रकार से अपने तर्क प्रस्तुत किए:-
मैकाले ने बताया कि 1813 कe आज्ञा पत्र में जो साहित्य शब्द का तात्पर्य है, वह अंग्रेजी साहित्य से है ना की किसी और साहित्य जैसे - संस्कृत और अरबी आदि।
इसी प्रकार भारतीय विद्वान का तात्पर्य उस व्यक्ति से था जो लोग और मिल्टन के साहित्य का ज्ञाता हो ना कि प्राच्य साहित्य का ज्ञाता या विद्वान व्यक्ति हो।
मैकाले ने यह भी तर्क दिया कि प्राच्य भाषाएँ व्यर्थ और अनुपयोगी हैं। इसलिए अंग्रेजी भाषा को इस शिक्षा का माध्यम बनाना आवश्यक है।
मैकाले के अनुसार भारतीय भाषाओं में साहित्यिक और वैज्ञानिक ज्ञान का अभाव देखने को मिलता है। यह भाषाएँ अल्पविकसित हैं, और इन भाषाओं में सरलता
से महत्वपूर्ण ग्रंथों का अनुवाद नहीं किया जा सकता। इसलिए मैकाले ने कहा हमें उन व्यक्तियों को शिक्षित करना है, जो किसी भी प्रकार वर्तमान समय में मातृभाषा द्वारा शिक्षित नहीं किए जा सकते।
मैकाले ने कहा कि एक श्रेष्ठ यूरोपीय पुस्तकालय की अलमारी भारत और अरब के संपूर्ण साहित्य के बराबर होती है।
संस्कृत साहित्य का मजाक उड़ाते हुए भी मैकाले ने कहा कि संस्कृत साहित्य पूर्णतय: अनुपयोगी है। उसका जीवन में कोई लाभ नहीं है।
उसने विवरण में कहा कि हम ऐसे साहित्य को पढ़ाएंगे जो अत्यंत निम्न कोटि का है, जबकि हम सम्पूर्ण इतिहास और दर्शन का ज्ञान करा सकते हैं
तब हम क्या ऐसे चिकित्सा साहित्य का ज्ञान कराएंगे जिन पर पशु चिकित्सकों को भी लज्जा आएगी। ज्योतिष एक ऐसा विषय है, जिस पर स्कूलों की अंग्रेज बालिका हँस पड़ेगी।
मैकाले ने तर्क देते हुए कहा कि संस्कृत अरबी तथा फारसी में लिखित कानून की अंग्रेजी में सहिंता वनवा दी जाये जाए।
मैकाले ने कहा कि अंग्रेजी भाषा पाश्चात्य भाषाओं में सबसे अच्छी है। जो इस भाषा का ज्ञान रखता है, वह सुगमता से विश्व के सभी ज्ञान के भंडार को प्राप्त कर सकता है।
अंग्रेजी के पक्ष में मैकाले ने निम्नलिखित तर्क दिए:-
- अंग्रेजी भाषा के प्रति भारतवासियों की भी रूचि है। राजा राममोहन राय ने एक पत्र में यह बताया भी था।
- जो उच्च वर्ग के भारतीय लोग हैं, वह अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। अंग्रेजी भाषा शासकों की भी भाषा हो गई है
- अगर प्रयास किया जाए तो यह भी संभव हो सकता है, कि अंग्रेजी पूर्वी समुद्री क्षेत्रों की भी भाषा बन जाएगी।
- ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका तथा यूरोप के कुछ देशों की भाषा अंग्रेजी है, भारत के सम्बन्ध भी इनसे जुड़ रहे है।
- अंग्रेजी भाषा विद्यालयों में छात्र फीस देकर अंग्रेजी पढ़ने को तैयार हो सकते हैं।
- भारतीय लोग भी अंग्रेजी में निपुणता प्राप्त करेंगे इस दिशा में सरकार को प्रयास करना चाहिए।
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लॉर्ड विलियम बैटिंग द्वारा स्वीकृति Approval by Lord William Batting
मैकाले ने अपना विवरण पत्र प्रस्तुत कर दिया और इस पर जेम्स प्रिंसेप के विचार मांगे गए जो एक प्राच्यवादी शिक्षा नीति समर्थक थे।
प्रिंसेप ने मैकाले द्वारा दिए गए सभी विवरणों का खंडन किया तथा प्राच्य साहित्य और पारम्परिक शिक्षा पर विशेष बल दिया।
किंतु प्रिंसेप के तर्क लार्ड विलियम बैटिंग को अधिक प्रभावित, संतुष्ट नहीं कर पाए और उन्होंने मैकाले का विवरण पत्र को आधार बनाकर 7 मार्च 1835 में एक नवीन शिक्षा नीति की घोषणा कर दी जिसके प्रमुख उदेश्य निम्न प्रकार से हैं:-
- अंग्रेजी साम्राज्य का मुख्य उद्देश्य भारतीयों में पाश्चात्य साहित्य शिक्षा और विज्ञान का प्रचार करना होगा। जबकि शिक्षा संबंधी पूरी धनराशि पाश्चात्य साहित्य और ज्ञान के प्रचार में खर्च की जाएगी।
- प्राच्य विद्यालयों को बंद नहीं किया जाएगा। इन विद्यालयों में पदस्थ अध्यापकों को समान वेतन और छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जाती रहेगी।
- प्राच्य विद्यालयों की पुस्तकों का मुद्रण और प्रकाशन पर पर्याप्त धन व्यय किया जाएगा।
- जो भी धनराशि शिक्षा पर व्यय के लिए तय हुई है, उस धनराशि के द्वारा भारतीयों में अंग्रेजी भाषा के माध्यम द्वारा पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान का प्रचार प्रसार कर भारतियों को शिक्षित किया जाएगा।
यह लॉर्ड विलियम बैटिंग की प्रथम घोषणा थी। जिसमें अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाकर शिक्षा के उद्देश्य साधनों और नीति का स्पष्टीकरण कर दिया था।
साधारण शब्दों में इसे तो प्राच्य पाश्चात्य विवाद का अंत माना जाता है। विलियम बैटिंग की यह घोषणा भारतीय शिक्षा के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है।
मैकाले शिक्षा नीति की आलोचना Macaulay's criticism of education policy
मैकाले की शिक्षा नीति की आलोचना कई विद्वानो ने की कियोकि मैकाले शिक्षा पद्धति का सबसे बड़ा दोष तो यह था,
कि मैकाले को स्वयं भारतीय भाषाओं के साहित्य का ज्ञान नहीं था, और उसने भारतीय साहित्य की भाषाओं के प्रति अपमानजनक शब्द भी कहे।
इस प्रकार से मैकाले ने अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन किया लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति का दोष था, कि उसने निस्यंदन सिद्धांत को अपनाया था।
क्योंकि यह सिद्धांत भारतीयों को विद्वान तो नहीं बना सकता वरन क्लर्क बनाने के लिए उत्तरदायी था। मैकाले की शिक्षा पद्धति सिर्फ नौकरी तक ही सीमित थी।
इस शिक्षा पद्धति द्वारा अंग्रेजी शासन के लिए कलर्क तैयार हो सकते थे, विद्वान नहीं।
मैकाले शिक्षा नीति का भारतीय शिक्षा पर प्रभाव Impact of Macaulay's Minute on Indian education
शिक्षा की आधुनिक संरचना - मैकाले ने प्राच्य पाश्चात्य विवाद समाप्त किया था। तथा शिक्षा की आधुनिक संरचना देकर वह पहला व्यक्ति बन गया जिसने शिक्षा की नीति बनाई।
भारत के लिए पाश्चात्य ज्ञान - भारत के देशवासियों के लिए उसने पाश्चात्य शिक्षा और ज्ञान के द्वार खोल दिए जिससे अंग्रेजी के माध्यम से वैज्ञानिक और आर्थिक क्षेत्र में प्रगति होने लगी थी।
भारत में राजनीतिक जागृति - अंग्रेजों ने भारत में समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का पाठ पढ़ा कर भारतीयों में राजनैतिक भावना उत्पन्न की थी।
कहा जाता है, कि अगर भारत में अंग्रेजी का उदय ना हुआ होता तो भारत में स्वतंत्रता का बीज भी ना बोया जाता। इसलिए इस निष्कर्ष पर पहुँचना बहुत ही कठिन है, कि मैकाले की शिक्षा पद्धति कैसी रही।
क्योंकि एक तरफ मैकाले की शिक्षा पद्धति से हानियाँ हुई हैं। वहीं दूसरी ओर लाभ भी हुआ है। किन्तु मैकाले को भारतीय शिक्षा का प्रवर्तक कहा जा सकता है।
दोस्तों इस लेख में आपने मैकाले का विवरण पत्र तथा आलोचना पड़ी। आशा करता हुँ, यह लेख आपको अच्छा लगा होगा।
Ans. भारत में प्राच्य पाश्चात्य शिक्षा का विवाद के समय जून 1834 में लॉर्ड मैकाले गवर्नर जनरल की काउंसिल के एक कानूनी सदस्य के रूप में भारत आए थे। Ans. मैकाले ने 2 फरवरी 1835 को प्राच्य पाश्चात्य शिक्षा का विवाद पर अपनी सलाह और रिपोर्ट लार्ड विलियम बैंटिंग को प्रस्तुत की। Ans. मैकाले का पूरा नाम लॉर्ड टॉमस बैबिंग्टन मैकॉले (Lord Thomas Babington Macaulay) है। Ans. भारत में अंग्रेजी शिक्षा का जनक मैकाले को कहा जाता है।Q.1. मैकाले भारत कब आया था?
Q.2. मैकाले का विवरण पत्र कब आया?
Q.3. मैकाले का पूरा नाम क्या है?
Q.4. भारत में अंग्रेजी शिक्षा का जनक कौन है?
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